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Saturday, July 11, 2009

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ
अटल बिहारी वाजपेयी
ये कैसा अधिकार....
धारा ३७७ पर डेल्ही उच् न्यायलय का बयान एक इसे समाज की और इशारा करती है, जहाँ भारतीय सभ्यता को मौलिक अधिकार के हतियार से कतला होता नजर आ रहा है। लोगों में आधुनिकता आने से लोग अपनी मूल पहचान खोती नज़र आती है।
धारा ३७७ बहुत साल पहले एक अंग्रेज शासक लोर्ड मेकाले द्वारा लागु किया गया था, जिसमे समलेंगिकता को कानूनन अपराध बताया गया है। ये कानून भारतीय भारतीय संस्कृति को देखते हुए लागु किया गया था। देश भर में धारा ३७७ को हटाने की बात पर व्यापक चर्चा हो रही है। जिसमे कुछ लोगों ने इसका अत्यन्त विरोध किया है और कुछ लोग इसे मौलिक अधिकार का चोला पहना रहे है। इस मुद्दा पर दिमाग से नही दिल से सोचने का वक्त है। जो लोग मौलिक अधिकार की बात करते है उन्हें ये सोचना चाहिए की मौलिक अधिकार और swatantra से हट कर समाज की भी कुछ सीमाएं होती है, जिसके अन्दर सभी लोगों को एक सामाजिक उतरदायित्व निभाना होता है।
सम्लेंगिकिकों का धर्म की आर लेना की रामायण और महाभारत कल में भी सम्लेंगिक संबंधो की पुष्टि हुई है , लेकिन उन लोगो को शायद ये पता नही की उन समयों में भी इन लोगों का एक अलग समाज था जो उतम और आदर्श समाज से अलग था।
आज यदि धारा ३७७ को हटा दिया जाता है तो हो सकता है की आगे चल कर वैश्ययों का समाज भी अपने - अपने अधिकारों को ले कर सरक पर आ जाए। इसके आलावा कई एसे वर्ग है जो अप्राकृतिक संबंधो की वकालत करते है। अत इस महामंदी और सूखे के समय लोगों को जन कल्याण के लिए आवाज उठानी चाहिए न की अपनी व्यक्तिगत समस्यायों को कानूनी रूप देने के लिए...

Friday, July 3, 2009

ममता की रेल.....

रेल मेल..... ममता की" ममता"

ममता की रेल बजट कई सोगातों के साथ आई हैरेल मंत्री ममता बनर्जी ने आम आदमी के साथ साथ उन लोगोका भी ख्याल रखी है जिसकी आमदनी १५०० प्रति महीने से भी कम हैममता बनर्जी के इस बजट में गरीबों केलिए "इज्जत" योजना को जगह दी हैइसके अर्न्तगत गरीब लोग भी अ़ब इज्जत के साथ सफर कर सकेंगे
१०० किलोमीटर तक अति गरीब लोगों को २५ रुपयें का पास दिया जाएगाइसके आलावा स्टूडेंट्स को भी रेलवे पास कम शुल्कों पर देने की पेशकश की गयी हैकम समय में दी गयी इस बजट में यदि गौर किया जाए तो मंत्री महोदया बंगाल पर कुछ ज्यादा ही मेहेरबान दिखी१२ नए नॉन स्टापगारियों में एक भी बिहार नही दी गयी,इसके आलावा रेलवे स्टेशनों के पुन नवीनीकरण योजनाओ में ही पटनाऔर ही हाजीपुर जैसे जन्च्शनो का नाम सुनने को मिला
खैर जो भी हो एक बात तो स्पष्ट हो जाती है की इस बजट में भी कांग्रेस की नयी युवा फैक्टर की बू रही थी
आम आदमी को पटियाने वाले बात पर ममता का तत्काल शुल्क १०० करना , दिन के बजाय दिन पहलेतत्काल से टिकेट का मिलना, ५० से ज्यादा नयी रेल गारियों को पटरी पे लाना,और इसके आलावा इतिहास मेंपहली बार १२ नयी नॉन स्टाप रेलों का नेटवर्क बनाना,और तो और पत्रकारों को भी खुश करने के लिए ३० से ५०प्रतिसत की रियायत देना इत्यादि मन लुभावन पेशकश कीयदि इन सभी बातों को अमली जामा पहनाया जाताहै तो वास्तव में यह एक एतहासिक बजट होगी

Sunday, June 14, 2009

यादों के आँगन में.......
फिर यूँ ही यादों के आँगन में ताकने को मन मचला....
लवों पे हँसी , दिल में खुशियों की किलकिलाहट,
डरा सा, और उत्साहित भी...
फिर आँगन के आँचल में खेलने को मन मचला।
मासूम सा चेहरा , बेखौफ सी नज़र....
pahaaron के goud में खेलती हवाओं सी मदमस्त...
मन में शरारत दिल में लिए सपनो की बारात...
फिर इसी बचपन को बाँहों में समेटने को मन मचला।
कहाँ गयी वो बचपन....
में सहम सा गया,,,,
डर सा गया॥
कहाँ बिखर गयी वो नाजुक सपनों के घरोंदे...
अरे ये क्या....
नज़र में खौफ क्यो....
सही ग़लत में फर्क क्यो.....
फिर वो शरारत देखने को मन मचला...
फिर वो बचपन जीने को मन मचला।
कहाँ जाती है बचपन....
क्यों जिन्दगी जीने को मजबूर होते हम,
क्यों कम गिरते , ज्यादा संभलते हम...
क्यों यादों के आँगन में ताकने को मचलते हम...
क्या यही वो बचपन है.......

Saturday, June 13, 2009

कानपूर के कुछ महाविद्यालयों ने गर्ल्स स्टूडेंट्स को जिन्स और टी-शर्ट पहनकर महाविद्यालय प्रांगन में प्रवेश नही करने को शक्त निर्देश दिया है।

क्या ये कदम महाविद्यालय परिसर में अश्लीलता पर रोक लगा सकेगी?

आपकी प्रतिकिया.......

क्या महिला आरक्षण बिल महिलाओं के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी?

संयुक्त प्रगति शील गठ्बंदन सरकार इस बार पुरे जोश में दिखाई दे रही है। विकास के प्रति प्रतिबधत्ता इसके १०० दिन के एजेंडा से ही साफ हो गई है, क्यों न हो जनता इस बार यु. पि. ये सरकार को पुन सत्ता में ला कर इसंयुक्त प्रगति शील गठ्बंदन सरकार इस बार पुरे जोश में दिखाई दे रही है। विकास के प्रति प्रतिबधत्ता इसके १०स बात की और संकेत किया है की जनता को विकास चाहिए।

सरकार के १०० दिन का एजेंडा में सबसे महत्वपूर्ण कदम महिला आरक्षण बिल है। अब वो समय आ चुका है की वर्षों से किए ja रहे vadon को amlijama pahnaya जाए। महिला आरक्षण बिल एक esa मुद्दा रहा है जिसे lagvag pratek पार्टियों ने समय समय पर bhunane की कोशिश की है, और समय आने पर sabo के muh पर tala sa लग jata है। क्या vastav में ये बिल महिलाओं को विकास की sidi राह dikhane में saphal हो payega? क्या कुछ संख्या में महिला सदन में पहुच कर पुरे महिलाओं के के बरे में सोंच पायेगी? ये चंद सवाल है जो कुछ शीर्ष नेताओं को इस बिल का विरोध करने पर विवस करता है।

बिल का मोजुदा स्वरुप कई सवाल खरे कर सकते है। ये बिल वाकई महिलाओं का विकास कर सकता है बसरते की इस पर दलित व पिछरे वर्ग को लेकर राजनीती न की जाए, सदन में मुस्लिम तुस्टीकरण को आधार मन कर इस बिल पर हंगामा न किया जाए। मोजुदा स्वरुप में सबसे बरी बात महिला सिट का परिवर्त्निये होना है, अर्थात प्रत्येक चुनाव के बाद महिलाओं की सिट बदलती रहेगी। हो सकता है की अरक्षित सिट पर ज्यादातर मंत्रियों के अपने हो, इस तरह के कई एसे बातें है जिस पर सर्वदालिये मंथन की जरुरत है।

सरकार ने तो इस तरफ कदम भी बढ़ा चुकी है। सांसद मीरा कुमार को लोस अध्यक्ष चुन कर अपनी इक्छा व्यक्त कर चुकी है , आगे अन्य पार्टियों पर निर्भर करता है की इस मुद्दे को कितना भुना सकता है।

Wednesday, June 10, 2009

"सामान शिक्षा प्रणाली"
यदि मानव सव्यता के विकास के प्रत्येक चरणों पैर गौर किया जाए तो पता चलता है की मानवों ने अपने बुद्धिऔर तर्क शक्ति आधार पर विकास की और कदम दर कदम बढ़ा
अपने जीवन में शिक्षा की उपादेयता को देखते हुए मानवों ने शुरू से ही शिक्षा पैर जोर देता रहा हैबदलते सरकार ने भी कई एसे योजनाये लागु किए जिसे यदि पूर्ण योजना के तहत लागु की जाती तोअपेकझित आक्रों के करीब जरुर पंहुचा जा सकता थाभारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए समयसमय पर बहुत सी योजनाये चलाये गए. देश में पहली राष्ट्रीय शिक्षा निति सन् १९६० में बनाये गयी। एस निति केतहत हरेक बच्चों को मुफ्त प्रथिमिक शिक्षा देने की बात कही गयी थीसन् १९८५-८६ में सरे देश में नवोदयविद्यालय की स्थापना की गयी , इसके आलावा उपरोक्त योजनाओ से अति महत्वपूर्ण और सवेंदंसिल योजना१९९५ में चलाया गया जिसमे बच्चों और अभिवावकों में शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए कदम उठाया गयाथापुरे देश में इस योजना के अर्न्तगत बच्चों को दोपहर का भोजन भी दिया जा रहा था
उपरोक्त महत्वपूर्ण योजनाओ के वावजूद भी हम लोग पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने असफलरहे हैइस संद्रव में कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तावित सामान शिक्षा प्रणाली काफी महत्व रखती हैये प्रणाली एकइसी व्यवस्था स्थापित में सक्षम है जिसमे सभी तबको को एक सामान शिक्षा प्राप्त हो पायेगीग्रामीण इलाकामें आज कई एसे स्कूल है जहाँ पढ़ाई का नामोनिशान नहीं हैइसी समस्या को देखते हुए कोठारी आयोग नेत्रि-भाषा सूत्र के आधार पर पुरे देश के बच्चों को बिना किसी भेदभाव से मातृभाषा से शुर करके राज्य विशेष कीभाषा को माध्यम बनते हुए उचा स्तर की अंग्रेजी सिखाने की अनुशंषा किया था
यदि कोठारी आयोग को पूर्ण रूप से अंगीकार कर लिया जाए और देश मेंव्याप्त बहु- स्तरीय शिक्षा व्यवस्था को हाथ दिया जाए तो भारत वर्ष में एक ऐसी समाज की स्थापना होगी जिसमेसमरूप ज्ञान मिलेगा और अज्ञान रूपी अन्धकार सदा के लिए दूर हो जायेगी

Sunday, June 7, 2009

" जिन्दगी के रंग....."
सुना था जिन्दगी बहुरंगो का मेल है...
सुना था जिन्दगी कई पहलुओ का खेल है...
क्या पता था वो मेरे सामने आयेगी ,
जिन्दगी के रंगों को धारा पे लाएगी...

याद नही कब आयी , कब गयी॥
कब जिन्दगी के रंगों से उत्सव मना गयी...
मुझे मेरे मैं से दोस्ती करा के...
जिन्दगी के रंगों का स्वाद चखा गयी,
उसके स्पर्शों से उपजी एहसास से.....
सारी कायनात सिम्स्त कर बाँहों मैं समां जाती थी....
उसकी आखों की एक मटकी.....
जिन्दगी के रंगों में डूबने का बहाना दे जाती थी॥

शुक्रगुजार हूँ उस "एहसास" का...
जो उसके आने से छा जाती थी...
जिसने लगाया सवारियां के रंग॥
जिसने सम्झ्हाया जिन्दगी के रंग.....