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Tuesday, November 22, 2011

ऐ जिन्दगी, तेरी पनाहों में कितने रंग देखे मेने,
हर रंगाई में तेरा वजूद पाता हूँ.
क्या हरा और क्या पीला,
खिलने की हर अदा पे तेरा नाम पाता हूँ.

आँखों के इस लत क्या करू,
तू इसे बगावत की कला सिखा गयी,
ठगते ठगते मैं खुद से ठगा सा रहता हूँ.
तेरे हाथों पे बिखरी हुई मेहँदी की ठंडक,
हल्के हल्के आवाज़ों से तेरी तरफदारी में व्यस्त है,
एक नज़र देखों तो सही,
तेरे हाथों में कम्पन क्यों है.

ये जिन्दगी तेरी पनाहों में कितने रंग देखे मेने,
हर रंगाई में तेरा वजूद पाता हूँ.