Pages

Tuesday, May 15, 2012

एक जिद

एक  जिद ,
कि बिखरे पन्नो को सहेज लूँ, ... एक जिद,
कि पुरानी किताबों को फिर से पढ़ लूँ !!
शब्दों को अपने शुर में सजा लूँ,... एक जिद,
कि उन्हें फिर अपने एहसासों से रंग लूँ, .... एक  ज़िद्,
कि फिर वही गीत गुनगुनाऊ !! 

ख्वाबों के धुन से अपने नींदों को सुकून दू,... एक जिद, 
कि ख्वाब को हकीकत का शक्ल का दूँ,
अब हर उस मोड़ पर ठिकक सा जाता हूँ,
जहाँ अभी भी मेरे तराशे हुए सपने है!!
 
अब सपनो को सच होते देखने की जिद है,
लेकिन क्या ये तितलियों के पीछे भागने जैसा है,
क्या ये घरोंदे को बनते और फिर टूटते हुए सा है,
आज न सही कल ही,.. इस जिद को फिर से,
पूरा होते देखना है,... एक जिद,
कि इस जिद में वही मासूमियत घोल दू,..
 

Friday, February 3, 2012

!अपना गाँव!


ऐसा भी होता है क्या,

जब तेरे छाँव को पाऊ,

हर थकान मुसकुरा उठे,

जब तेरे हद को छू लूँ,

अल्ल्हड़ सा होऊ !

दीवारों पर पुरानी लकीरें,

जब यूँ ही खिंच गयी थी चलते चलते,

आज भी इसकी गहराई को समझ सकता हूँ !

तेरे खेतों की मिटटी अभी भी नर्म है,

इसकी सोंधी खुशबु तेरे एहसासों को अनमोल बनती है !

रातों की अँधेरी छाँव में,

खुशियों की रौशनी फैली है,

और उस पगडण्डी पर घास अभी भी जन्मा नहीं,

जिसपर तितलियों के संग उड़ा करता था,

और अब बस यही सोचता हूँ कि,

ऐसा भी होता है क्या,

कि अपना गाँव वही है,

जैसा कभी देखा था हमने...... !!दीपक!!