लेकिन किसकी हूँ?
अपने ही घर में मैं,
सबसे पूछती हूँ.
रोती हूँ जब,
सब मुझसे पूछते है, कि
क्यों मैं उनकी हूँ !
हिंदी हूँ,
लेकिन किसकी हूँ.
नहीं पसंद है मुझे,
अपना दिवस,
बस कुछ जगह दे दो,
मेरे अपने घर में,
एक कोना दे दो,
जहाँ में रख सकूँ अपने प्यारे,
प्रेमचंद को,
जहाँ दुलार सकू अपने नटखट,
निराला को, नन्हे मैथिलि को,
नफरत से ही सही,
एक बार बोलो तो सही !
हिंदी हूँ,
डरती हूँ तेरे एहसानों से !