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Friday, September 30, 2011

हिंदी हूँ..

हिंदी हूँ,
लेकिन किसकी हूँ?
अपने ही घर में मैं,
सबसे पूछती हूँ.
रोती हूँ जब,
सब मुझसे पूछते है, कि
क्यों मैं उनकी हूँ !
हिंदी हूँ,
लेकिन किसकी हूँ.

नहीं पसंद है मुझे,
अपना दिवस,
बस कुछ जगह दे दो,
मेरे अपने घर में,
एक कोना दे दो,
जहाँ में रख सकूँ अपने प्यारे,
प्रेमचंद को,
जहाँ दुलार सकू अपने नटखट,
निराला को, नन्हे मैथिलि को,
नफरत से ही सही,
एक बार बोलो तो सही !

हिंदी हूँ,
डरती हूँ तेरे एहसानों से !

Wednesday, September 7, 2011

कैसी हो!

अपनी गलियां अकसर तेरी पता पूछती है,
मेरी ख़ामोशी तेरी बेवफाई को कितना छुपाये,
मेरी धरकन तो सब बयां करती है.
और अनजान सा हो जाता हूँ ,
उन चीजो से जिसने ठहाके लगाये थे,
तेरे मेरे संग.
पत्थरों का ठक-ठक,
डालियों का वो झुरमुठ,
बादलों का ठंढक,
आज भी तेरे संग का एहसास दिलाता है.
न जाने कैसे पता इनको कि में तेरे बिना,
जी नहीं सकता,
अकसर मेरा हाल पूछने चले आते है.
इसे क्या नाम दू,
पता नहीं,
लेकिन चाहता हूँ,
तेरे होने की चाहत मुझे बर्बाद करे।

दीपक...