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Saturday, August 21, 2010

जो बीत गयी सो बात गयी....

किसके रोने से कौन रुका है यहाँ,
जाने को ही सब आयें है , सब जायेंगे,
चलने की तैयारी ही तो है जीवन,
कुछ सुबह गएँ, कुछ डेरा शाम उठाएंगे

संध्या को जब सूरज डूबता है पच्शिम मे,
तब कितने फूल बाग में मुरझा जाते है,
जब सुबह खिसक कर, चाँद कहीं सो जाता है....
तब कितने आंसू धरती पर उग आते है