"सामान शिक्षा प्रणाली"
यदि मानव सव्यता के विकास के प्रत्येक चरणों पैर गौर किया जाए तो पता चलता है की मानवों ने अपने बुद्धिऔर तर्क शक्ति आधार पर विकास की और कदम दर कदम बढ़ा ।
अपने जीवन में शिक्षा की उपादेयता को देखते हुए मानवों ने शुरू से ही शिक्षा पैर जोर देता आरहा है। बदलते सरकार ने भी कई एसे योजनाये लागु किए जिसे यदि पूर्ण योजना के तहत लागु की जाती तोअपेकझित आक्रों के करीब जरुर पंहुचा जा सकता था। भारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए समयसमय पर बहुत सी योजनाये चलाये गए. देश में पहली राष्ट्रीय शिक्षा निति सन् १९६० में बनाये गयी। एस निति केतहत हरेक बच्चों को मुफ्त प्रथिमिक शिक्षा देने की बात कही गयी थी। सन् १९८५-८६ में सरे देश में नवोदयविद्यालय की स्थापना की गयी , इसके आलावा उपरोक्त योजनाओ से अति महत्वपूर्ण और सवेंदंसिल योजना१९९५ में चलाया गया जिसमे बच्चों और अभिवावकों में शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए कदम उठाया गयाथा। पुरे देश में इस योजना के अर्न्तगत बच्चों को दोपहर का भोजन भी दिया जा रहा था।
उपरोक्त महत्वपूर्ण योजनाओ के वावजूद भी हम लोग पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने असफलरहे है। इस संद्रव में कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तावित सामान शिक्षा प्रणाली काफी महत्व रखती है। ये प्रणाली एकइसी व्यवस्था स्थापित में सक्षम है जिसमे सभी तबको को एक सामान शिक्षा प्राप्त हो पायेगी। ग्रामीण इलाकामें आज कई एसे स्कूल है जहाँ पढ़ाई का नामोनिशान नहीं है। इसी समस्या को देखते हुए कोठारी आयोग नेत्रि-भाषा सूत्र के आधार पर पुरे देश के बच्चों को बिना किसी भेदभाव से मातृभाषा से शुरउ करके राज्य विशेष कीभाषा को माध्यम बनते हुए उचा स्तर की अंग्रेजी सिखाने की अनुशंषा किया था।
यदि कोठारी आयोग को पूर्ण रूप से अंगीकार कर लिया जाए और देश मेंव्याप्त बहु- स्तरीय शिक्षा व्यवस्था को हाथ दिया जाए तो भारत वर्ष में एक ऐसी समाज की स्थापना होगी जिसमेसमरूप ज्ञान मिलेगा और अज्ञान रूपी अन्धकार सदा के लिए दूर हो जायेगी।
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