Pages

Wednesday, September 7, 2011

कैसी हो!

अपनी गलियां अकसर तेरी पता पूछती है,
मेरी ख़ामोशी तेरी बेवफाई को कितना छुपाये,
मेरी धरकन तो सब बयां करती है.
और अनजान सा हो जाता हूँ ,
उन चीजो से जिसने ठहाके लगाये थे,
तेरे मेरे संग.
पत्थरों का ठक-ठक,
डालियों का वो झुरमुठ,
बादलों का ठंढक,
आज भी तेरे संग का एहसास दिलाता है.
न जाने कैसे पता इनको कि में तेरे बिना,
जी नहीं सकता,
अकसर मेरा हाल पूछने चले आते है.
इसे क्या नाम दू,
पता नहीं,
लेकिन चाहता हूँ,
तेरे होने की चाहत मुझे बर्बाद करे।

दीपक...

No comments:

Post a Comment