Pages

Friday, February 19, 2010

कुछ बहाने अच्छे होते है......

व्यस्तता के इस रंग में रंगे इन्सान ख़ुशी की तलाश में पल प्रति पल प्रयत्नशील रहता है। इस प्रयत्नशील अवस्था में मनुष्य ख़ुशी की तलाश में सफल भी होता है और कहीं कहीं असफल होने पर खुश होने क बहाना भी बना लेते है। मानवीय- व्यव्हार क यह एक एसा अध्याय है, जो सामान रूप से हर मनुष्य में पाई जाती है। मैं इस अध्याय को पढने की कोशिश करता रहता हूँ, वैसे मैं अर्थशास्त्र क विद्यार्थी रहा हूँ, फिर भी पता नहीं पत्रकारिता करने के पश्चात् मनोविज्ञान में अपेक्छाक्रित ज्यादा रूचि रहता है। खैर, ....... गत १४ फरबरी मेरा पूरा दिन मनोविज्ञान के अध्ययन में ही गुजरा। काफी प्रवाहित कर देने वाला परिणाम सामने आया। मैं सोच रहा था की आखिर खुछ लोग क्यों इस धरा से विमुख रहते है, जो इस प्रेम की बारि में बबूलक पेरलगाने की कोशिश करते है। लेकिन भारतीय होने के नाते मेरे मन में एक सकारात्मक विरोध भी हुआ , कि लोग करवाचौथ, तीज, और वसंत पर्वों को इस कदर क्यों नहीं मानते है। इसमें कोई दो राय नहीं है की भारतियों के लिए तह एक प्रसिध पर्व है और लोग इसे बरे उत्साह से मानते है, लेकिन केवल माध्यम वर्गों में.... आज भी भारत एक इकलोता देश है जहाँ कुछ एसे क्षेत्रियें पर्व है जिसका सम्बन्ध लोगों के जीविका से जुरा है फिर भी हम लोग शायद ही जानते होंगे।
एक बात तो सत्य है कि इस वैश्विककरण के दौर में प्रोडक्ट तो प्रोडक्ट यदि "भावना" को भी ढंग से लोगों के सामने रखा जाये प्रभाव पक्ष में होगा। शुक्रगुजार हूँ कि नफरत के इस दौर में कम से कम एक दिन तो प्रेममय हो जाती है। आखिर कार कुछ बहाने अच्छे होते है......

No comments:

Post a Comment