इधर उधर भागती सपनों को,
मेने अपने पास बिठाया I
मेरी निहारती आँखों ने कई सवाल किये उससे,
कि क्या तुम कभी सोती नहीं?
कि क्या तेरे आँखों में सपना नहीं?
इधर उधर भागती सपनों को सुकून कहाँ,
मानो किसी और आँखों ने इसे दावत दी हो I
मेरी आँखे खुली,
लेकिन अभी भी रात बांकी है,
मेरा बिस्तर अभी भी धंसा सा है,
जैसे कोई बैठा हो, मेरे सिरहाने के पास,
अभी में देख सकता हूँ,
घर के कोने में एक घुंगरू सा कुछ है,
शायद उसी का है I
इधर उधर भागती सपनों को चैन कहाँ,
फिर मिलना है उससे,
आखिर उसका सामान जो लौटना है...
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