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Tuesday, September 28, 2010

मत बाटों इन्सान को..

मंदिर- मस्जिद- गिरिजाघर ने,
बाँट लिया भगवन को,
धरती बांटी सागर बाटा
मत बांटों इन्सान को।

अभी रह तो शुरू हुई है,
मंजिल बैठी दूर है,
उजीयाला के महलों में बंदी,
हर दीपक मजबूर है।

मिला न सूरज का संदेशा
हर घटी मैदान को,
धरती बांटी सागर बाटा -
मत बाटों इन्सान को।
अब भी हरी भरी धरती है,
ऊपर नील वितान है।
अभी प्यार का जल देना है,
हर प्यासी चट्टान को।
धरती बांटी सागर बाटा,
मत बाटों इन्सान को।

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