एक जिद ,
कि बिखरे पन्नो को सहेज लूँ, ... एक जिद,
कि पुरानी किताबों को फिर से पढ़ लूँ !!
शब्दों को अपने शुर में सजा लूँ,... एक जिद,
कि उन्हें फिर अपने एहसासों से रंग लूँ, .... एक ज़िद्,
कि फिर वही गीत गुनगुनाऊ !!
ख्वाबों के धुन से अपने नींदों को सुकून दू,... एक जिद,
कि ख्वाब को हकीकत का शक्ल का दूँ,
अब हर उस मोड़ पर ठिकक सा जाता हूँ,
जहाँ अभी भी मेरे तराशे हुए सपने है!!
अब सपनो को सच होते देखने की जिद है,
लेकिन क्या ये तितलियों के पीछे भागने जैसा है,
क्या ये घरोंदे को बनते और फिर टूटते हुए सा है,
आज न सही कल ही,.. इस जिद को फिर से,
पूरा होते देखना है,... एक जिद,
कि इस जिद में वही मासूमियत घोल दू,..